पीआर के भक्त होने
के नाते मेरा यह मानना हैं की रचनात्मक सोच हमारा मौलिक अधिकार हैं | इसी रचनात्मक
सोच को चमकाने के लिए मैंने इस नवरात्र में कलयुगी विभीषण को खोजने का ठाना | अब
आप ये भी सोच सकते हैं की मैंने रामायण के और सारे पात्र को पछाड़ कर विभीषण को ही
क्यू खोजना शुरू किया | क्या मुझे राम पसंद नहीं हैं या फिर रावण से मेरी पुस्तैनी
दुश्मनी हैं ? तो पाठको, आप तपाक से मेरी जबाब को लपक ले की मैंने ऊपर ही बता दिया
था की मुझे रचनात्मक सोचना था और जब पीआर (Public Relations) के चश्मे से देखना शुरू किया तो विभीषण से हुबहू
मिलता हुआ एक कलयुगी इन्सान मुझे मिल गया | और मेरी खुशी और उतावलापन दुगुना तब हो
गया जब मुझे पता चला की यह महान पुरुष पीआर से ही वास्ता रखता हैं | ‘प्रशांत
किशोर’ उर्फ़ पीके उर्फ़ विभीषण | उम्र लगभग चालीश साल | जन्मस्थान बिहार |
पीके जी सबसे पहले
चर्चा में 2014 के आम चुनाव में आये थे जब मोदी जी के जीत का सेहरा उनके मत्थे मडा
गया था | उसके बाद इस विभीषण ने नितीश कुमार का दामन थामा और आरजेडी के साथ मिलकर
बिहार में सरकार बनवाई | इन्होने ही सरकार बनवाई ये लोग मानते हैं , मैं नहीं |
इसके इन्होने पीछे मुड़कर नहीं देखा और अब उत्तर प्रदेश में राहुल गाँधी जी को
जिताने के लिए एडी छोटी एक किये हुए हैं | हाल ही में आपने समाचार में ये भी सुना
होगा की उत्तर प्रदेश में राहुल गाँधी के यात्रा के दौरान उनकी खाट खड़ी हो गयी थी
|
इस इतिहासिक कार्य
के पीछे भी पीके जी का ही हाथ था | अब यह भी ख़बर आई हैं की केंद्रीय मंत्री वाई एस
चौधरी की पार्टी तेलगु देशम के लिए भी ये अपना कार्ड खेलने वाले हैं | पंजाब में
तो खैर आयेंगे ही | इन कुछ सालों में ही इन्होने करोड़ कमा कर असली वाले विभीषण को
भी पीछे छोड़ दिया | क्या भारत में ऐसी सोच वाले को ही आगे बढाया जाता हैं ? क्या
इन सब जैसे पीआर वालो के चलते ही सच्चे पीआर (Public Relations) वालो की कमी आई हैं ? इन सब का तो जबाब मैं भी
अभी नहीं दे सकता हैं | हालाँकि मैं आपको चितरंजन पार्क के सबसे अच्छे पंडाल का
पता बता सकता हूँ | नवरात्रा में आप भी डांडिया खेलिए और अपने आस पास रचनात्कम सोच
से उनके पात्र को अपने आस पास खोजते रहिये |
लेखक अनिल कुमार - PR Professionals