Wednesday, 28 December 2016

अल्लाह मेहरबान तो चोर की किस्मत भी मालामाल

इस शनिवार को भी मैं बहुत खुश था क्योंकी अगला दिन रविवार था, रविवार यानी छुट्टी का दिन तो इस रविवार को भी सोचा था की लेट से उठूँगा, लेकिन सात बजते ही न्यूज पेपर वाले ने दरवाजा खटखटा कर मेरी नींद तोड़ दी | सुबह सुबह पैसे मांगने आ धमका, अब क्या था उठ ही गया, तो किचन में घुसा और साफ़ – सफाई में लग गया | दोपहर को बाहर घुमने का प्लान बना लिया |
तैयार होकर बाहर निकल गया, चूँकि लंच बाहर करना था, शॉपिंग और डॉक्टर से अपॉइंटमेंट भी निबटाना था तो मैं तकरीबन 5 हजार रूपए लेकर निकल पड़ा | सबसे पहले मैंने एक रेस्तरां में भरपेट स्वादिष्ट खाना खाया | जितना खाया उसके हिसाब से पैसे देने में बड़ी ख़ुशी हुई | फिर डॉक्टर के पास गया, डॉक्टर ने फ़ीस नहीं ली और तो और दवाइयां भी फ्री में दे दी, मैं तो गदगद हो गया | शायद मेरे जान पहचान और पीआर काम आ गया | मन ही मन सोचा वाह ! क्या बात है, आज तो जैसे ऊपर वाले की दया – दृष्टी मेरे ऊपर से हट ही नहीं रही है | खूब पैसा बच रहा है |

उसके बाद जब मैं गुडगाँव गार्डन पहुंचा तो वहाँ काफ़ी भीड़ थी, लेकिन जैसे ही मैंने प्रवेश किया पूरी भीड़ एक साथ बाहर निकलने लगी, मानो मेरे लिए पूरा पार्क खाली हो रहा हो | पार्क घुमने के बाद शॉपिंग के लिए निकल पड़ा | वहाँ भी कम रेट में मुझे काफ़ी सस्ते कपड़े मिल गए, विश्वास नहीं हो रहा था की आज क्या हो रहा है भगवान मेरे ऊपर इतना मेहरबान क्यों है | उसके बाद मैं बिलिंग काउंटर पर पैसे देने के लिए वॉलेट निकालने के लिए जेब में हाथ डाला | मैं अचानक से डर गया | मेरे जेब में वॉलेट था ही नहीं | ध्यान से देखा तो पता चला किसी चोर ने मेरी जेब काट ली है | अब मैं समझ गया की दया – दृष्टी मेरे ऊपर नहीं बल्कि उस चोर पर थी और इसलिए हर जगह मेरे पैसे बचते ही जा रहे थे ताकि चोर के अकाउंट में अच्छे – खासे पैसे जमा हो जाए | फिर क्या ! मुंह लटकाए अपनी किस्मत को वहीँ गुड बाए बोलकर घर की ओर निकल पड़ा |

                                   लेखक अनिल कुमार -PR Professionals 

Thursday, 22 December 2016

कला सच में प्रकृति की देन है

कहा जाता है की दुनिया में बहुत सी ऐसी चीजे होती है जिनको हम सीख सकते है लेकिन कुछ ऐसी भी चीज होती है जिनको हम चाह कर भी नहीं सीख सकते है और वो है कला | कला तो बहुत लोगो के पास होता है लेकिन एक सही मायने में कलाकार वही होता है जो कला का बखूबी प्रदर्शन कर सके |

एक चीज तो पहले के ज़माने में बहुत ख़राब और दुःख लगती थी कि जैसे ताजमहल को जिस कलाकार ने बनाई उसका हाथ काट दिया गया, कितना गलत बात है | पहले के राजा यह क्यों नहीं सोचते थे कि इतने बड़े कलाकार से कोई और अजूबा चीज का निर्माण कराया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं! शायद अगर वे कलाकारों के साथ ऐसा नहीं करते तो आज शायद भारत में ताजमहल दुनिया का सातवा अजूबा के साथ-साथ कई और अजूबे के निर्माण हुआ होता लकिन वे लोग स्वार्थी राजा थे अपना नाम और शोहरत के लिए अपनी मनमानी किया करते थे |  

आज बड़ी ख़ुशी होती है आज के ज़माने के कलाकारों को हाथ काटने के बजाय बल्कि उनको प्रोत्साहित किया जाता है | बहुत सालो बाद मुझे आज काफी ख़ुशी मिली जब एक कलाकार को उसके कला का श्रेय मिला जिनका नाम है श्री नरेश कुमार वर्मा | जो राजस्थान के मूल निवासी है लेकिन गुड़गाँव में उनके पिता जी ने कला को प्रदर्शित करने के लिए एक सेंटर स्थापित किये जिसका नाम है मातुराम आर्ट सेंटर्स | नरेश जी कलाकारी का नमूना देश विदेश में भी आज चर्चा का विषय है | भारत में उन्होंने कई ऐसे बड़ी मुर्तिया जैसे हनुमान जी, शंकर जी, कृष्णा जी इत्यादि की मुर्तिया बनाई है जो अपने आप में अजूबा है| इसके अलावा उन्होंने विदेशो नेपाल, मोरिशस और कनाडा में भी अपनी हुनर पेश कर चुके है |


हर एक कलाकार की ख्वाइश होती है उसकी कलाकारी का नमूना पूरी दुनिया को पता चले | हाल ही में दीनदयाल उपाध्याय संपूर्णवांग्मय के लोकार्पण के मौके पर दीनदयाल के मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के द्वारा हुई | यहाँ पर नरेश जी के लिए एक अजूबा और ताजमहल के कलाकार के लिए भी अजूबा था लेकिन फर्क बस इतना है कि शाहजहाँ ने उस कलाकार के हाथ कटवा दिए और यहाँ नरेश जी को आगे एक और अजूबा बनाने के लिए मौका मिला | नरेश जी के लिए इससे बड़ी चीज क्या हो सकती है जिनकी कलाकारी का अनावरण कोई और नहीं बल्कि देश का प्रधानमंत्री कर रहा हो| कम से कम नरेश जी के हाथ तो सुरक्षित है | पहले के जमाने में कलाकारों के पास हुनर होते हुए भी एक डर था जिसकी वजह से बहुत से ऐसे कलाकार अपने कला को छुपाने में भलाई समझे | यही वो बदलाव है जो कही न कही आज के कलाकारों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है |     

                   लेखक सदाम हुसेन PR Professionals    

Tuesday, 20 December 2016

विरोध और अभिव्यक्ति

सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव और सूचना क्रांति, अभिव्यक्ति की आजादी , कानून को सही रखने की जिम्मेदारी और सत्ता को सुरक्षित बनाए रखने की मजबूरी के बीच भारतीय लोकतंत्र बार-बार परीक्षा के दौर से गुजर रहा है । वैसे तो अभिव्यक्ति की आजादी पर हमेशा से ही संकट रहा है, परन्तु अब ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया के जरिए हर आम इन्सान को सार्वजनिक रूप से अपनी बात कहने का अधिकार और तरीका मिल गया है | जिससे सरकार की हालत कुछ वैसी ही हो गई है,  जैसे जुहू बीच  पर किसी गँवई पुलिसवाले के पहुँचने पर होती है । घुमने वालों की मौजूदगी पर उसे ऐतराज है और उनकी 'आजादी' पर भी । यदि उनका बस चले तो सबको वहाँ से भगा दें, मगर वैसा करने की भी आजादी नहीं है । वह मन में गरियाते हुए लौट जाता है, पर उसे अंत तक समझ में नहीं आता कि यह हो क्या रहा है।

भारत जैसे बृहद लोकतंत्र में स्वतंत्र अभिव्यक्ति के कारण असुरक्षा की भावना है । जहाँ एक तरफ सिनेमा, किताब, भाषण, विचार-विमर्श इत्यादि के विषय में कुछ ज्यादा ही कड़ाई  दिखाई जा रही है, तो  वहीं सोशल मीडिया के मामले में भी सत्ता विरोधी बात पर धर-पकड़ हो रही है | वैसे भी युवा वर्ग के लिए सोशल मीडिया उनके व्यस्त जीवन शैली का एक अभिन्न अंग बनता जा रहा है । वह युवा वर्ग जो भारत की आबादी में आधे से भी ज्यादा अपनी हिस्सेदारी रखता है । लेकिन उनकी सहज अभिव्यक्ति पर सरकार , ध्यान नहीं दे रही है। यह वही पीढ़ी है जो भारत का भविष्य है , आज किसी विचारों को मानना या न मानना इनके सोच पर निर्भर हैं तो यही उनकी सही मायने में आज़ादी है | पर उनकी अभिव्यक्ति को दबाना या नज़रन्दाज़ करना एक गंभीर वैचारिक मतभेद का कारण हो सकता है |

आज अगर यह कहें कि अभिव्यक्ति की आजादी केवल अपराधियों, सांप्रदायिक तत्वों, अतिवादियों, उग्रवादियों, कट्टरपंथियों आदि के लिए ही है तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं है। वह लोग किसी भी फिल्म का प्रदर्शन रोक सकते हैं, किसी भी किताब को जला सकते हैं , किसी भी व्यक्ति के घर में आग लगा सकते हैं , किसी भी वक्ता को अपने ही शहर और घर में घुसने से रोक सकते हैं । सही मायने में अभिव्यक्ति की आज़ादी और सम्पूर्ण आज़ादी इन्हीं लोंगों के लिए है | सच्चे लोकतंत्र के सज़ग प्रहरी यही लोग हैं क्योंकी किसी के द्वारा थोपे गए विचार का विरोध करना मतलब देशद्रोही बन जाना है ...


लेखिका अमृता राज सिंहPR Professionals 

Thursday, 15 December 2016

क्योंकि पप्पू इसलिए पास नहीं होता


पप्पू वैसे तो कई बार परीक्षा में फेल हो चुका है, लेकिन इस बार का फेल होना उसे अखर गया | उसकी परीक्षा की तैयारीयों में माँ ने भी पूरा जोर लगाया था | जवान से बुजुर्ग तक, दर्जनों माहिर लोगों को उसकी तैयारी के लिए लगाया गया था | लोगों ने एक से बढकर एक गुर दिय और माँ ने दूध-बादाम का पूरा ध्यान रखा | सुबह-शाम इस बार काम कर जायेगा और पप्पू पर लगा फेल होने का कलंक धुल जायेगा| पप्पू भी मन – बेमन से सड़ासड़ गिलास खाली कर देता | यह देख लगने लगा था कि पप्पू इस बार सीरियस है | आखिर हो भी क्यों नहीं, उसी के उम्र के बच्चे अब कुर्सी सँभालने लगे थे और वह पाँचवी भी पास नहीं कर पा रहा था |

माँ तो माँ होती है, वह चाहती थी कि पप्पू उनके चलते फिरते ही सेटल हो जाए | इसलिए वह पढाई के साथ साथ तमाम टोटके भी करवा रही थी | उन्होंने कई मंदिरों में विभूति और मजारों से ताबीज मंगवा कर पप्पू के सिरहाने रखवा दिया था | इन टोटकों को प्रभाव कहिये या पप्पू का उत्साह की उसे पास होने के सपने भी आने लगे थे | लेकिन जब वह परीक्षा हॉल में गया तो फिर वही गलती कर बैठा, जो बचपन से कर रहा था |दरअसल पप्पू जब छोटा था तब उसके पिताजी उसे अपने साथ अपनी सियासी दुकान पर ले जाया करते थे | पप्पू बड़े बड़े दिग्गजों की गोद में खेलता, उनसे बातें करता | इन सबके बीच पिता को यकीं होने लगा था कि पप्पू एक दिन जरुर उनकी कुर्सी संभालेगा, लेकिन उनका यह विश्वास ज्यादा दिनों तक टिक नहीं सका | पहला धक्का तो उसी दिन लगा था जब उन्होंने पप्पू से पूछा था की बड़े होकर क्या बनोगे ? पप्पू ने कहा था –‘गुलेल लूँगा और चिड़िया मारूंगा’| तब पापा ने यह सोचकर मन को समझा लिया था कि पप्पू अभी बच्चा है | बड़ा होगा तो समझदारी आ जाएगी |


पांच साल बाद भी जब पप्पू का जवाब नहीं बदला तो वह वाकई चिंतित होने लगे | उन्होंने सोचा शिक्षा से अच्छे अच्छे बदल जाते हैं तो शायद पप्पू भी बदल जाये | लेकिन पप्पू तो पप्पू था वहाँ पांच साल रहने के बावजूद वह पाँचवी पास नहीं कर सका | फेल की डिग्री लेकर भी जब पप्पू पास भले ही नहीं हुआ हो लेकिन उसकी मनोवृति जरुर बदल गई होगी | पापा ने उसका जमकर पीआर भी किया पर उसका नतीजा भी उल्टा ही हुआ | विदेश से लौटने के बाद पप्पू के पापा ने उससे फिर वही सवाल किया | इस बार उसका जवाब था –‘शादी करूँगा दहेज़ लूँगा ...’ यह सुनकर तो पप्पू के पापा फुले नहीं समाये, लेकिन जैसे ही पप्पू ने अगली लाइन बोली वह सद्गति को प्राप्त हो गए | पप्पू ने कहा था ‘दहेज़ में कच्छा लूँगा, कच्छा पुरानी हो जाएगी तो उससे इलास्टिक निकालूँगा, गुलेल बनाऊंगा और चिड़िया मारूंगा|’

लेखक अनिल कुमार -PR Professionals 

Friday, 9 December 2016

पर्यावरण संरक्षण और मीडिया

पर्यावरण संरक्षण के विषय में आप जानते होंगें फिर भी मैं लिख रहा हूँ - प्रकृति द्वारा दिये गए उपहारों (वन,जल,अग्निवायु,पृथ्वी एवं जीव) की सुरक्षा करना  ही पर्यावरण संरक्षण कहलाता हैं | प्रकृति का स्वभाविक रूप बहुत ही शुद्ध और निर्मल हैं , लेकिन इसके प्रदुषण से मानव जाति के साथ समस्त जीवों जंतुओं के लिए खतरा उत्पन्न हो रहा है । इस खतरे से बचने की बहुत जरुरत है , और यह तभी संभव है जब आप-हम और लोग , प्रदुषण की भायवहता को समझें तथा पर्यावरण को बचाने के लिए अपनी जिम्मेदारी समझें | प्रदुषण से हमारी आने वाली पीढ़ी को ही हानि पहुंचेगी साथ ही इससे जैविक-चक्र पर भी असर पड़ता है और यह असर जीवन के हर हिस्से को प्रभावित करता है |

हम सब पैदा होते हैंधीरे-धीरे बड़े होते हैंऔर जीवन-चक्र में तीन चरणों  बालयुवा व वृद्धा अवस्था को पार करते हुए अंत में मृत्यु को प्राप्त करते हैं । यह जीवन चक्र प्राकृतिक प्रक्रिया है और यह हर जीव-जंतु के साथ घटित होती हैं | हमारा पूरा जीवन-चक्र प्रकृति पर ही निर्भर हैं । अगर प्रकृति से वायुभोजन या जल में से कोई एक चीज़ न मिले तो समझ लीजिये जीवन- चक्र का पहिया वहीं थम जायेगा ।

आज 21वीं सदी में मीडिया सिर्फ राजनीतिक्राइमफ़ैशनमनोरंजनपेज 3 पार्टी के जंजाल में उलझ के रह गया है । अगर आप  सुबह समाचार पत्र उठायेंगें या कोई न्यूज़ चैनल खोलेंगें तो बस राजनीति से जुड़ीहत्या लूटपाट, मुद्रास्फीति ,मनोरंजन नेताओं या सेलेब्रिटी के पार्टी की खबरें  तथा खेल, धर्म से जुड़ी खबरें ही देखेंगें ।

पर्यावरण संरक्षण या पर्यावरण से जुड़ी खबरें आप तब देखेंगें जब कोई आपदा आती है क्योंकी उस टाइम के लिए वह ब्रेकिंग न्यूज़ होती है । विभिन्न मीडिया संस्थानो में भी शिक्षक और छात्र सिर्फ मीडिया की चकाचौंध में खोये रहते है तथा सिर्फ राजनीतिकक्राइम खेल ,मनोरंजन पत्रकारिता पर ही फोकस किये रहते हैं | अब जब मीडिया के धुरंधरों का ध्यान पर्यावरण संरक्षण की तरफ नहीं रहेगा तो फिर जागरूकता कहाँ से आयेगी | क्योंकी आज मीडिया की पहुँच अनेक माध्यमों के द्वारा हर वर्ग और हर जगह है खासकर जबसे टीवी का प्रसार बढ़ा है और वर्तमान समय में इंटरनेट द्वारा समर्थित सोशल साईटों का दायरा बढ़ा है | गाँव हो या शहर अब मीडिया की पहुँच प्रत्येक जगह व्यापक स्तर पर पहुँच गयी है जिसमें दिन प्रतिदिन वृद्धि ही हो रही है |


फिर जिस कारण मनुष्य जाति ही खतरे में है उसके दुष्परिणामों और उपायों के बारे में मीडिया लोंगों के बीच जागरूकता फ़ैलाने में कंजूसी क्यों करती है ??? खुद की सुविधाओं और आराम के लिए ,यह सब कुछ जो हम बना रहे हैं , जीवन ख़त्म होने के बाद उसका कोई मतलब नहीं रहेगा | जब वायुमंडल इतना विषाक्त हो जायेगा और मानव पृथ्वी से ख़त्म होने लगेगा फिर हम जागरूक होकर क्या करेंगे | पर्यावरण का संरक्षण हम  प्रत्येक लोंगों का कर्तव्य है | इसके साथ-साथ ही मीडिया का भी यह दायित्व है की इसके विषय में लोंगों को जागरूक करे |   

                                  लेखक विन्ध्या सिंह PR Professionals 

Thursday, 8 December 2016

इंसानियत को खोज रहा हूँ

बाबू! कुछ दे दो भगवान तुम्हारा भला करेगा | कुछ पैसे देते हुए मैंने उस बूढी महिला से पूछा, दादी जी ! आपको कोई देखनेवाला नहीं है क्या ? जवाब मिला, है तो कई, पर सबने ठुकरा दिया| उनकी बात सुन कर मेरा मन कई साल पीछे चला गया | चिलचिलाती धुप थी | धुल उड़ रही थी | लोगों ने सिर ढक रखे थे | एक बूढी महिला सड़क पर पड़ी थी | बायीं टांग और बायाँ हाथ टुटा था | चेहरा धंसा था, आँखों में आंसू थे | कपड़े के नाम पर किसी की शर्ट उन्होंने पहन रखी थी | वह भी मटमैली हो चुकी थी | उस समय हम विद्यार्थी थे | पास के ही कॉलेज में पढ़तें थे | उस महिला का मदद का ख्याल हमारे दिमाग में आया | कुछ दोस्त इकट्ठा हो गए | बूढी महिला के बारे में लोगों से पता किया |

मालूम हुआ की इनकी बेटियों ने ही इन्हें घर से बहार फेंक दिया है | हमें उन्हें घर में वापस रखने का आग्रह किया, पर वें नहीं मानीं, अंत में उन्ही के घर के बाहर एक आशियाना बनाने पर उन्होंने सहमती दे दी | हममें से कोई लकड़ी का टुकड़ा लेकर आया, तो कोई बांस ले आया, कोई अपने कमरे से चादर ले आया, तो कोई मच्छरदानी लेकर आ गया | लड़कियों ने सिल कर उनके लिए बेड तैयार कर दिया | उन्हें नहलाया, उन्हें अपने कपड़े पहनाए, महिला पहले से बेहतर अवस्था में दिखने लगी | मदद करनेवालों विद्यार्थियों की संख्या बढ़ने लगी | मैं हर सुबह लाइब्रेरी जाते समय उनके लिए चार-ब्रेड लाने लगा और उन्हें खिला कर ही जाता था | कुछ लड़कियां होस्टल से लंच ले आती थी | कुछ विद्यार्थी शाम को उनके लिए जूस और फल ले जाते थे, जबकि कुछ लड़के रात में उन्हें खाना दे कर मच्छरदानी लगा देते थे |

यह रोज का नियम बन गया था | हमारे काम को लोग कौतूहल भरी नजरों से देखते जरुर थे, लेकिन न तो उनके घर से कोई मदद करने आया और न ही आस – पड़ोस से | इस बीच हमने उनके लिए वृद्धाश्रम खोजना भी जारी रखा | कोई मदर टेरेसा, तो कोई किसी अन्य महापुरुष के नाम पर थे, लेकिन जब उन्हें रखने की बारी आई, तो कोई भी बड़ी रकम लिए बिना उन्हें रखने को राजी नहीं हुआ| करीब 25 दिनों बाद महिला की तबीयत बिगड़ी | हमने उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया, फिर वापस लाए | उन्हें ग्लूकोज चढ़ाना जारी रखा | सेवा में लगे रहे, पर अगली सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली | हममें से हर कोई रो पड़ा, कोई वहीँ पर, तो कोई क्लास रूम में, तो कोई कॉलेज की छत पर आकर | लगा कोई अपना बिछड़ गया | उन्होंने आँखें क्या मुंदी, जगह – जगह से रिश्तेदारों की फ़ौज जमा हो गई | जिन्दा रहने पर पीने का पानी तक नहीं पूछा, पर मरने के बाद उन्हें दूध से नहलाया, नए कपड़े पहनाये | समाज का यह रूप देख मैं अन्दर से हिल गया | अब मैं एक खोज पर हूँ | इंसानियत की, खोज | अब तक मिली नहीं, आपको मिले, तो जरुर सूचित कीजिएगा |   


                              लेखक अनिल कुमार -PR Professionals 

Sunday, 4 December 2016

बदलाव के नायक


राजनीति की सबसे बड़ी खूबी है ‘बदलाव’ | राजनीति में जाति विशेष की बहुलता के साथ ही समय समय पर नायक भी बदले जाते हैं | भारत की वर्तमान राजनीति में दलित वर्ग को सभी पार्टियाँ बहुत ही प्यार भरी नज़र से देख रहीं हैं और अपने अपने तरीके से डॉ भीमराव आंबेडकर को अपना नायक बताने का कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहीं हैं | आज अम्बेडकर सभी राजनितिक दलों की जरुरत बन गए हैं | ऐसा लगता है की सत्ता की चाबी हैं, अम्बेडकर | खैर , उच्च वर्ग से धीरे धीरे निम्न वर्ग की तरफ झुकती हुई पार्टियाँ यह एहसास तो दिला रही है की दलित मजबूत हुआ है और हो रहा है तथा यह इस बात का द्योतक है की समाज अपने बेहतर अवस्था में आने के लिए अंगड़ाई ले रहा है |

पर एक प्रश्न हमेशा ज़ेहन में रहता है की क्या यह राजनितिक पार्टियाँ बस चुनावी लाभ के लिए ही दलित प्रेम दिखाती है या वास्तव में इनके दिल में वह प्यार है ?

हालाँकि सीधा सीधा तो बस यही लगता है की यह बस एक दिखावा ही है | वोट मिल जाये और फिर काम निकल जाये | पार्टियों का मुख्य उद्देश्य तो यही रहता है की दलित वर्ग या पिछड़ा वर्ग का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति को पार्टी में लायें और उस समाज का वोट उस आधार पर पाएं | क्योंकी यह जो समाज के आधुनिक उद्धारक हैं वह सिर्फ अपना फायदा देखते हैं इनको खुद के ही समाज से ज्यादा सारोकार नहीं होता है | ऐसा उदहारण आप यूपी, बिहार के राजनीति में आसानी से देख सकते हैं | अभी यूपी में चुनाव आने वाला है और राजनितिक पार्टियाँ अपना रंग बदलने लगी हैं , इसलिए दलितों के बहुत सारे नायक दिखेंगे जो माइक पर चिल्ला चिल्ला कर यह बताएँगे की वही उनके नायक हैं और वही समाज में बदलाव लायेंगे | जो पिछले हजारों वर्षों से चल रहा हो ........
                                                                                                          
लेखिका अमृता राज सिंहPR Professionals 


Thursday, 10 November 2016

“Black” and “White”

Termed as one of the boldest moves of the Prime Minister Narendra Modi, demonetization has led to an unprecedented financial emergency in India. The discontinuation of higher currency notes has caused India a loss of 86 % of its monetary base. Though this surgical strike by the PM would have long term benefits, it is presently causing lot of trouble to the common man.

People can be seen standing in long queues outside banks and ATMs either to exchanges their old notes or converting portions of black into white. On one side, people are committing suicides due to cash crunch and not being able to exchange the old currency, and on the other hand many are trying to dig ways to exchange their black with gold/ foreign currency/ new notes. Being Indians, we can easily come up with jugaads for various problems and so have people come up with this one too.













Foreign currency

The ones on high demand are Chartered Accountants and bankers, who are suggesting ways to save people’s black from turning into worthless piece of paper. One of the jugaads is investing in foreign currency.

Jewellery

Buyers are willing to invest in gold and diamonds and save their black so that it can later get converted into white.

Land

 People have expressed the willingness to invest in land, though the value of property would soon cut down by many folds. This step is being taken to ensure the cash doesn’t go waste.

Friends and family

An interesting one is distributing Rs. 2.5 L to near and dear ones so that they get the same deposited in their accounts and keep 10-15% out of the same. This however, doesn’t solve the problem for people with crores of black hidden under the beds.

Another decision may come soon on December 31st; let’s see which shock or surprise it brings for the country. 

The author of this opinion article is Ms. Lovleen Sharma at PR Professionals               

Tuesday, 8 November 2016

Reasons Why Professionalism Is Vital In The Workplace

Now a day, in many organizations, professionalism of the employees is not very often considered to be a priority. The behavior, physical presentation of the staff, the way they conduct themselves is what comes in professionalism. It is evident in areas such as vocal communication and how efficiently employees stick to company policies. It is not that Professionalism exists only within the workplace; it is rather with customers and clients as well. The Professional behavior of the staff, which is sometimes overlooked, speaks a lot about the organization, business and their success- regardless to its size. If you guess how, read these below given three reasons to understand its overall impact.

1. Respect Is Increased

People tend to behave in a similar manner, once Professionalism is valued in an organization. As professional environment is set up, it not only earns respect for authoritative figures, but also for fellow colleagues and clients. It also aids in cutting down inappropriate personal conversations, or those which could be considered discourteous. The level of respect for a customer or business partnership is also visible when an employee constantly behaves professionally, regardless of unsuitable comments from the other party.
2. Business Reputation Will Flourish

An organization which is known for its positive reputation and professionalism is one which will stand the test of time. When it comes to opting one source over another for a particular service, the one with most productive feedback is likely to be chosen. Interaction between employees and their associations with main stakeholders are one of the major contributors to this positive brand coalition.
3. Conflict Is Reduced
In a professional business setup, the employees will be less probable to resort to conflict to solve a matter. Professionalism promotes a respectful culture, which should see conflicts be handled in the exact way. Professional employees should be inclined to understand boundaries more clearly, and solve any minor issues in an efficient and respectful approach. Professional behavior also helps staff avoid offending clients when they have a different perspective, as well as offending those from different cultures or backgrounds.
         The author of this opinion article is Ms. Anjoo Dalal at PR Professionals