Thursday 22 December 2016

कला सच में प्रकृति की देन है

कहा जाता है की दुनिया में बहुत सी ऐसी चीजे होती है जिनको हम सीख सकते है लेकिन कुछ ऐसी भी चीज होती है जिनको हम चाह कर भी नहीं सीख सकते है और वो है कला | कला तो बहुत लोगो के पास होता है लेकिन एक सही मायने में कलाकार वही होता है जो कला का बखूबी प्रदर्शन कर सके |

एक चीज तो पहले के ज़माने में बहुत ख़राब और दुःख लगती थी कि जैसे ताजमहल को जिस कलाकार ने बनाई उसका हाथ काट दिया गया, कितना गलत बात है | पहले के राजा यह क्यों नहीं सोचते थे कि इतने बड़े कलाकार से कोई और अजूबा चीज का निर्माण कराया जा सकता है लेकिन ऐसा नहीं! शायद अगर वे कलाकारों के साथ ऐसा नहीं करते तो आज शायद भारत में ताजमहल दुनिया का सातवा अजूबा के साथ-साथ कई और अजूबे के निर्माण हुआ होता लकिन वे लोग स्वार्थी राजा थे अपना नाम और शोहरत के लिए अपनी मनमानी किया करते थे |  

आज बड़ी ख़ुशी होती है आज के ज़माने के कलाकारों को हाथ काटने के बजाय बल्कि उनको प्रोत्साहित किया जाता है | बहुत सालो बाद मुझे आज काफी ख़ुशी मिली जब एक कलाकार को उसके कला का श्रेय मिला जिनका नाम है श्री नरेश कुमार वर्मा | जो राजस्थान के मूल निवासी है लेकिन गुड़गाँव में उनके पिता जी ने कला को प्रदर्शित करने के लिए एक सेंटर स्थापित किये जिसका नाम है मातुराम आर्ट सेंटर्स | नरेश जी कलाकारी का नमूना देश विदेश में भी आज चर्चा का विषय है | भारत में उन्होंने कई ऐसे बड़ी मुर्तिया जैसे हनुमान जी, शंकर जी, कृष्णा जी इत्यादि की मुर्तिया बनाई है जो अपने आप में अजूबा है| इसके अलावा उन्होंने विदेशो नेपाल, मोरिशस और कनाडा में भी अपनी हुनर पेश कर चुके है |


हर एक कलाकार की ख्वाइश होती है उसकी कलाकारी का नमूना पूरी दुनिया को पता चले | हाल ही में दीनदयाल उपाध्याय संपूर्णवांग्मय के लोकार्पण के मौके पर दीनदयाल के मूर्ति का अनावरण प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी के द्वारा हुई | यहाँ पर नरेश जी के लिए एक अजूबा और ताजमहल के कलाकार के लिए भी अजूबा था लेकिन फर्क बस इतना है कि शाहजहाँ ने उस कलाकार के हाथ कटवा दिए और यहाँ नरेश जी को आगे एक और अजूबा बनाने के लिए मौका मिला | नरेश जी के लिए इससे बड़ी चीज क्या हो सकती है जिनकी कलाकारी का अनावरण कोई और नहीं बल्कि देश का प्रधानमंत्री कर रहा हो| कम से कम नरेश जी के हाथ तो सुरक्षित है | पहले के जमाने में कलाकारों के पास हुनर होते हुए भी एक डर था जिसकी वजह से बहुत से ऐसे कलाकार अपने कला को छुपाने में भलाई समझे | यही वो बदलाव है जो कही न कही आज के कलाकारों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है |     

                   लेखक सदाम हुसेन PR Professionals    

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